Baroda Chhedi | Baroda Chhedi - Arya Samaj Jabalpur (9300441615) for Meghnagar - Petlawad - Ranapur आर्यसमाज चेरीताल जबलपुर में आर्यसमाज विवाह करने हेतु समस्त जानकारियां फोन द्वारा प्राप्त की जा सकती हैं। विवाह सम्बन्धी जानकारी या पूछताछ के लिए आप मो.- 09300441615 पर (समय - प्रातः 10 बजे से सायं 8 तक) श्री देव शास्त्री से निसंकोच बात कर समस्त जानकारी प्राप्त कर सकते हैं तथा आपको जिस दिन विवाह करना हो उस मनचाहे दिन की बुकिंग आप फोन पर करा सकते हैं। फोन द्वारा बुकिंग करने के लिए वर-वधू का नाम पता और विवाह की निर्धारित तिथि बताना आवश्यक है। युगलों की सुरक्षा - प्रेमी युगलों की सुरक्षा एवं गोपनीयता की गम्भीरता को ध्यान में रखते हुए तथा माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रेमी युगलों की सुरक्षा सम्बन्धी दिये गये दिशा-निर्देशों के अनुपालन के अनुक्रम में हमारे आर्य समाज द्वारा विवाह के पूर्व या पश्चात वर एवं वधू की गोपनीयता एवं सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए विवाह से सम्बन्धित कोई भी काग़जात, सूचना या जानकारी वर अथवा वधू के घर या उनके माता-पिता को नहीं भेजी जाती है, जिससे विवाह करने वाले युगलों की पहचान को गोपनीय बनाये रखा जा सके, ताकि उनके जीवन की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न न हो सके। 1. वर-वधु दोनों हिन्दू-जैन-बौद्ध या सिक्ख होने चाहिएं। 2. वर-वधु दोनों के जन्म प्रमाण हेतु हाई स्कूल की अंकसूची या कोई शासकीय दस्तावेज तथा पहचान हेतु मतदाता परिचय पत्र या आधार कार्ड अथवा पासपोर्ट या अन्य कोई शासकीय दस्तावेज चाहिए। विवाह हेतु वर की अवस्था 21 वर्ष से अधिक तथा वधु की अवस्था 18 वर्ष से अधिक होनी चाहिए। 3. वर-वधु दोनों को निर्धारित प्रारूप में ट्रस्ट द्वारा नियुक्त नोटरी द्वारा सत्यापित शपथ पत्र प्रस्तुत करना होगा। किसी अन्य नोटरी से सत्यापित शपथ पत्र स्वीकार नहीं किये जावेंगे। 4. वर-वधु दोनों की अलग-अलग पासपोर्ट साईज की 6-6 फोटो। 5. दोनों पक्षों से दो-दो मिलाकर कुल चार गवाह, परिचय-पहचान पत्र सहित। गवाहों की अवस्था 21 वर्ष से अधिक हो तथा वे हिन्दू-जैन-बौद्ध या सिक्ख होने चाहिएं। 6. विधवा/विधुर होने की स्थिति में पति/पत्नी का मृत्यु प्रमाण पत्र तथा तलाकशुदा होने की स्थिति में तलाकनामा (डिक्री) आवश्यक है। 7. वर-वधु का परस्पर गोत्र अलग-अलग होना चाहिए तथा हिन्दू विवाह अधिनियम के अनुसार कोई निषिद्ध रिश्तेदारी नहीं होनी चाहिए। आर्यसमाज में सम्पन्न होने वाले विवाह "आर्य विवाह मान्यता अधिनियम-1937, अधिनियम क्रमांक 1937 का 19' के अन्तर्गत कानूनी मान्यता प्राप्त हैं। अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट द्वारा वैवाहिक जोड़ों की कानूनी सुरक्षा (Legal Sefety) एवं पुलिस संरक्षण (Police Protection) हेतु नियमित मार्गदर्शन (Legal Advice) दिया जाता है। विशेष सूचना- Arya Samaj, Arya Samaj Mandir तथा Arya Samaj Marriage, Court Marriage और इससे मिलते-जुलते नामों से इण्टरनेट पर अनेक फर्जी वेबसाईट एवं गुमराह करने वाले आकर्षक विज्ञापन प्रसारित हो रहे हैं। अत: जनहित में सूचना दी जाती है कि इनसे आर्यसमाज विधि से विवाह संस्कार व्यवस्था अथवा अन्य किसी भी प्रकार का व्यवहार करते समय यह पूरी तरह सुनिश्चित कर लें कि इनके द्वारा किया जा रहा कार्य पूरी तरह शासन द्वारा मान्य एवं लिखित अनुमति प्राप्त वैधानिक है अथवा नहीं। इसके लिए सम्बन्धित संस्था को शासन द्वारा प्रदत्त आर्य समाज विधि से अन्तरजातीय आदर्श विवाह करा सकने हेतु लिखित अनुमति अवश्य देख लें, ताकि आपके साथ किसी प्रकार की धोखाधड़ी ना हो। "आर्यसमाज संस्कार केन्द्र, चेरीताल, जबलपुर" अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट द्वारा संचालित है। भारतीय पब्लिक ट्रस्ट अधिनियम (Indian Public Trust Act) के अन्तर्गत पंजीकृत अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट एक सामाजिक-शैक्षणिक-धार्मिक-पारमार्थिक ट्रस्ट है। "आर्यसमाज संस्कार केन्द्र चेरीताल" जबलपुर में ट्रस्ट द्वारा संचालित एकमात्र आर्यसमाज संस्कार केन्द्र है। जबलपुर में इसके अतिरिक्त ट्रस्ट का अन्य कोई मन्दिर या शाखा अथवा संस्कार केन्द्र नहीं है। आप यह सुनिश्चित कर लें कि आपका विवाह शासन (सरकार) द्वारा आर्यसमाज विवाह कराने हेतु मान्य रजिस्टर्ड संस्था में हो रहा है या नहीं। आर्यसमाज होने का दावा करने वाले किसी बडे भवन, हॉल या चमकदार ऑफिस को देखकर गुमराह और भ्रमित ना हों। अधिक जानकारी के लिये सम्पर्क करें - आर्यसमाज संस्कार केन्द्र राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय ------------------------------------------ Arya Samaj Sanskar Kendra National Administrative Office
हमारा जीवन केवल हमारे लिये नहीं होना चाहिए। जैसे दीपक सामर्थ्यानुसार यथाशक्ति अन्धेरे से लड़ता रहता है वैसे ही हम भी अज्ञान, अन्याय, अभाव और आलस्य रूपी अन्धेरे से हमेशा लड़ते रहें। यह अन्धेरा कभी हम पर हावी न होने पाये।
विवाह हेतु आवश्यक जानकारी
(समय - प्रातः 10 बजे से सायं 8 तक)
अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
जबलपुर शाखा
TFF- 8, समदड़िया काम्प्लेक्स-1
चेरीताल, दमोह नाका के पास
जबलपुर (म.प्र.)
चलभाष क्रमांकः 9300441615
www.aryasamajmpcg.com
अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
आर्य समाज मन्दिर, दिव्ययुग परिसर
बैंक कॉलोनी, अन्नपूर्णा रोड
इन्दौर (मध्य प्रदेश) 452009
फोन : 0731-2489383, 8989738486
www.allindiaaryasamaj.com
Akhil Bharat Arya Samaj Trust
Jabalpur Branch
TFF-8, Samdariya Complex-1
Near Damoh Naka
Jabalpur (M.P.) 482002
Helpline No.: 9300441615
www.aryasamajmpcg.com
Akhil Bharat Arya Samaj Trust
Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
Narendra Tiwari Marg
Near Bank of India
Opp. Dussehra Maidan
Annapurna, Indore (M.P.) 452009
Tel. : 0731-2489383, 8989738486
www.aryasamajindore.com
हमारे यहाँ माँ को संतान का प्रथम शिक्षक माना जाता है, क्योंकि वह उसे आँचल रखकर उसका केवल पालन-पोषण ही नहीं करती, उसे संस्कार भी देती है। संस्कारों की घुट्टी के माध्यम से एक माँ अपनी संतान को बहुत कुछ सिखाती है, जो उसे एक बेहतर इंसान और श्रेष्ठ नागरिक बनाने में सहयोगी बनते हैं, लेकिन इन सबके बावजूद उस संतान को और भी अधिक गढ़ने की आवश्यकता होती है, ताकि वह विभिन्न क्षेत्रों में आकाशीय उड़ान भी भर स्वयं को बेहतर सिद्ध कर सके और यह कार्य शिक्षक से बेहतर और कोई दूसरा नहीं कर सकता है, इसलिए शिक्षक को समाज में उच्च स्थान दिया गया है। प्राचीन काल में यह स्थान पहले गुरुओं को प्राप्त था, क्योंकि उस समय आज की तरह स्कूल-कॉलेज नहीं होते थे और न ढेरों पाठ्यक्रम। उस दौर में आश्रम व्यवस्था थी, जहाँ पर गुरु विद्यार्थियों को वेद-पुराण, ज्योतिष आदि विषयों की मौखिक शिखा देते थे बदले में विद्यार्थी अपने गुरुओं की श्रद्धा-भाव से सेवा करते थे।
किसी भी समाज में शिक्षक को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है, क्योंकि वह समाज को शिक्षित करने के साथ-साथ उसका मार्गदर्शन भी करता है। भारत में गुरु-शिष्य परम्परा तभी से चली आ रही है, जहाँ शिक्षा देने वाला गुरु और उसे ग्रहण करने वाला शिष्य कहलाता है। शिक्षा पूर्ण करने के बाद शिष्य को गुरु दक्षिणा देनी पड़ती थी। उस दौर में गुरु द्रोणाचार्य, वशिष्ठ, कृपाचार्य, विश्वामित्र से लेकर चाणक्य तक गुरु हुए तो वहीँ अर्जुन, एकलव्य, कर्ण, उपमन्यु, नचिकेता से लेकर चन्द्रगुप्त जैसे शिष्य भी हुए, जो बताता है कि भारत में गुरु-शिष्य परम्परा कितनी प्राचीन और महान थी, जहाँ गुरु-शिष्य के सम्बन्ध पिता-पुत्र के समान थे। आज गुरु-शिष्य का स्थान शिक्षक का स्थान शिक्षक-छात्र ने ले लिया है और गुरुकुल का स्थान बड़े-बड़े कॉलेजों ने, जहाँ पर छात्र क्लास रूम में बैठकर अपने शिक्षक से ज्ञान ग्रहण करता है और बदले में वह उसका शुल्क देता अब यह एक व्यवस्था भी बन गई है।
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परमात्मा के अनेक गुणवाचक नाम महर्षि दयानन्द ने ऋग्वेद के 7वें मंडल के 61वें सूक्त के दूसरे मंत्र तक और माध्यन्दिन शुक्ल यजुर्वेद संहिता के सम्पूर्ण मंत्रों का भाष्य किया। उससे पूर्व उवट, महीधर और सायण इस का भाष्य कर चुके थे। उवट और महीधर के भाष्य मुख्य रूप से कात्यायन- श्रौतसूत्र में विनियोजित कर्मकाण्ड का अनुसरण करते हैं और सायण के भाष्य भी इसी...