भारत माँ
स्मरण करते हैं भारत के उन सत्पुरुष महामानवों को जिनका स्मरण मात्र ही चित्त में पावनता का संचार करता है। कदाचित अपने स्वरूप को, अपने आप को खोकर जीने का अर्थ समाप्त हो जाता है। दूसरों के श्रेष्ठ को धारण स्वीकार करना, ये मनुष्य की गरिमा होती है लेकिन अपने श्रेष्ठ को भूल जाना ये मनुष्य का आलस्य और प्रमाद होता है। आत्महीनता की पहचान होती है, इसलिए मेरा जो अपना श्रेष्ठ है जो मुझे मेरे पुरखों से मिला, मेरी परम्परा से मिला, मेरे धर्म से मिला, मेरे देश की माटी के सोंधेपन से मिला, वो है कपिल, कणाद की परम्परा से मिला और सबसे खूबसूरत जो मिला वो भारत की धरती पर मातृभाव मिला, मातृसत्ता मिली। भारत की मानवी ने जाना कि माँ होने के अर्थ क्या होते हैं। माँ कैसी होती है, माँ क्यों होती है और माँ की गरिमा क्या होती है। अगर सारे विश्व की मानवी को टटोलोगे तो भारत की स्त्री में ही वह स्वरूप दिखाई देगा जो धन्य करता है मनुष्यता को। सबसे पहले भारत ने ही दी है मातृसत्ता।
Let us remember those great men of India whose mere remembrance fills the mind with purity. Perhaps the meaning of life comes to an end when we lose our identity and self. Accepting the best of others is the dignity of a human being but forgetting one's own best is the laziness and negligence of a human being. It is the mark of inferiority, so the best that I have is what I got from my ancestors, my tradition, my religion, the fragrance of the soil of my country, that is what I got from the tradition of Kapil, Kanada and the most beautiful thing that I got was the feeling of motherhood on the land of India, matriarchy.
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