परम आनंद
भगवान अपनी विभूति ऐश्वर्य और सामर्थ्य को बताते हुए कहते हैं - मैं ही इस सम्पूर्ण जगत् का मूल कारण हूँ और मेरे से ही सारा जगत चेष्टा कर रहा है और मेरी इच्छा से ही सारे कार्य हो रहे हैं। मुझे ही इस जगत का आदि कारण जानकर बुद्धिमान भक्तजन मुझे ही निरंतर भजते हैं। भक्तों के भजने की रीती-नीति बताते हुए भगवान कहते हैं- उन भक्तजनों का चित्त मेरे में ही रमा रहता है, उनके जीवन मेरे ही लिए अर्पित रहते हैं। वे एक-दूसरे से मेरी ही चर्चा करते हैं और भक्ति रस के सरोवर में सराबोर होकर हर्षित होते हैं और परम आनंद की अनुभूति करते हैं।
Describing his greatness, opulence and power, God says - I am the root cause of this whole world and the whole world is striving because of me and all the works are being done because of my wish. Knowing Me to be the original cause of this world, intelligent devotees worship Me alone. Describing the customs and rituals of the worship of the devotees, God says - the mind of those devotees remains engrossed in Me, their lives are devoted to Me only. They discuss only Me with each other and become happy by getting drenched in the lake of devotional juice and feel the ultimate bliss.
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परमात्मा के अनेक गुणवाचक नाम महर्षि दयानन्द ने ऋग्वेद के 7वें मंडल के 61वें सूक्त के दूसरे मंत्र तक और माध्यन्दिन शुक्ल यजुर्वेद संहिता के सम्पूर्ण मंत्रों का भाष्य किया। उससे पूर्व उवट, महीधर और सायण इस का भाष्य कर चुके थे। उवट और महीधर के भाष्य मुख्य रूप से कात्यायन- श्रौतसूत्र में विनियोजित कर्मकाण्ड का अनुसरण करते हैं और सायण के भाष्य भी इसी...