राम-नाम में स्वाद
तुलसीदास, राम-नाम के अक्षरों की महिमा के बारे में कहते हैं - राम-नाम में स्वाद है, अमृत के सामान स्वाद है। इसमें तृप्ति, तुष्टि, सुगति और मोक्ष भी है। जिस समय राम-नाम का भावपूर्वक जप किया जाता है, जिस समय राम-नाम की करुण पुकार होती है तो उस समय अन्तस् में एक अद्भुत स्वाद होता है, मधुर रस होता है। राम-नाम में अद्भुत रस है। राम-नाम में मन लीन हो जाता है और हमें गहरी तृप्ति एवं संतुष्टि मिलती है। राम-नाम से जो डोर जुड़ती है, राम-नाम से जो तरंगे एवं लहरें उठती हैं, वे अत्यंत आल्हादित करने वाली होती हैं। मन उनमें लीन होकर झूमने लगता है।
Tulsidas says about the glory of the letters of Rama's name - Ram-name has taste, tastes like nectar. It also has contentment, contentment, happiness and salvation. At the time when the name of Rama is chanted with devotion, when there is a compassionate call to the name of Rama, there is a wonderful taste and a sweet rasa in the heart. There is a wonderful rasa in the name of Ram. The mind becomes absorbed in the name of Ram and we get deep satisfaction and satisfaction. The strings attached to the name of Rama, the waves and waves that arise from the name of Rama are very joyful. The mind starts swinging by getting absorbed in them.
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परमात्मा के अनेक गुणवाचक नाम महर्षि दयानन्द ने ऋग्वेद के 7वें मंडल के 61वें सूक्त के दूसरे मंत्र तक और माध्यन्दिन शुक्ल यजुर्वेद संहिता के सम्पूर्ण मंत्रों का भाष्य किया। उससे पूर्व उवट, महीधर और सायण इस का भाष्य कर चुके थे। उवट और महीधर के भाष्य मुख्य रूप से कात्यायन- श्रौतसूत्र में विनियोजित कर्मकाण्ड का अनुसरण करते हैं और सायण के भाष्य भी इसी...