निर्धन व्यक्ति
निर्धन व्यक्ति की न तो इज्जत होती है और न उसे कोई सुख नसीब होता है। वह न अपनी पत्नी की प्रसन्नता दे सकता और न अपने कोई सुख नसीब होता है। वह न अपनी पत्नी को प्रसन्नता दे सकता है और न अपने बच्चों को ही। दयनीय व्यक्ति को अपने भविष्य के सम्बन्ध में न कुछ ज्ञात होता है और न आस्था, अधूरी आकांक्षाए उसके मन में कुण्ठा पैदा कर देता हैं। वह तूफान में बहते हुए तिनके के समान इधर से उधर ठोकरें खाता रहता है।
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परमात्मा के अनेक गुणवाचक नाम महर्षि दयानन्द ने ऋग्वेद के 7वें मंडल के 61वें सूक्त के दूसरे मंत्र तक और माध्यन्दिन शुक्ल यजुर्वेद संहिता के सम्पूर्ण मंत्रों का भाष्य किया। उससे पूर्व उवट, महीधर और सायण इस का भाष्य कर चुके थे। उवट और महीधर के भाष्य मुख्य रूप से कात्यायन- श्रौतसूत्र में विनियोजित कर्मकाण्ड का अनुसरण करते हैं और सायण के भाष्य भी इसी...