शारीरिक बल
शरीरबल से उपयोगी श्रम हो सकता है। कारखाने उपयोगी सृजन कर सकते हैं, पर हम देखते हैं कि शारीरिक क्षमता और अनाचार उत्पन्न करने में लगी हुई है। अपराधों और अनाचारों में वे लोग अधिक लगे हैं; जिनमें शारीरिक बल की अधिकता है। भगवान ने जिन्हें रूप दिया है; वे उससे कला-कोमलता का सृजन करने की अपेक्षा पतन और दुराचार को प्रोत्साहन दे रहे हैं। कल-कारखाने नशेबाजी से लेकर विलासिता के अनेकानेक साधन बनाने में लगे हुए हैं। मनुष्य द्वारा मनुष्य मारे-काटे जाने के लिए जितनी युद्ध-सामग्री बन रही है; यदि उसे बदलकर सृजनात्मक उपकरण बनाए गए होते तो उतनी धनशक्ति का, जनशक्ति का, क्रिया-कौशल का न जाने संसार की सुख-शांति में कितना बड़ा योगदान मिला होता।
Useful labor can be done by physical force. Factories can create useful, but we see that physical capacity and incest is engaged in producing. They are more involved in crimes and malpractices; In which physical force is more. Whom God has given form to; Instead of creating art and softness from it, they are encouraging degradation and misconduct. Tomorrow-factories are engaged in manufacturing various means of luxury from intoxication. The amount of war material being made for man to be killed by man; If creative tools were made by changing it, then how much money power, manpower, action skills would have contributed to the happiness and peace of the world.
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परमात्मा के अनेक गुणवाचक नाम महर्षि दयानन्द ने ऋग्वेद के 7वें मंडल के 61वें सूक्त के दूसरे मंत्र तक और माध्यन्दिन शुक्ल यजुर्वेद संहिता के सम्पूर्ण मंत्रों का भाष्य किया। उससे पूर्व उवट, महीधर और सायण इस का भाष्य कर चुके थे। उवट और महीधर के भाष्य मुख्य रूप से कात्यायन- श्रौतसूत्र में विनियोजित कर्मकाण्ड का अनुसरण करते हैं और सायण के भाष्य भी इसी...