माता-पिता के कर्तव्य
केवल बच्चे पैदा करके ही माता-पिता के कर्तव्य की इतिश्री नहीं हो जाती, अपितु बालक के जन्म के पश्चात उनके कर्त्तव्य की कसौटी सम्मुख आती है। बच्चे उत्पन्न करना तो सरल है, परंतु उनके व्यक्तित्व का समुचित विकास करना, उन्हें सद्गुणी, सदाचारी, कर्त्तव्यवान नागरिक बनाना अत्यंत श्रम तथा कष्टसाध्य है। उत्तरदायी माता-पिता बालकों में प्रारंभ से ही सुसंस्कार डालने, समुचित शिक्षा-दीक्षा देने में सचेष्ट, सजग रहते हैं। प्रायः बालक एक वर्ष की आयु तक अपने चारों ओर के पर्यावरण को देखने, समझने लगता है। ज्यों-ज्यों वह बड़ा होने लगता है, परिवार के लोगों से हिलता-मिलता है। परिवार के वातावरण का, उसके उद्देश्यों का प्रभाव बच्चे के ऊपर अपरिहार्य रूप से पड़ता है। अतएव अभिभावकों का यह प्रथम कर्त्तव्य हो जाता है कि बच्चे को समुन्नत बनाने से पूर्व वे स्वयं अपने आचरण-व्यवहार को सुधारें तथा उसके समुखः कोई भी अवाँछनीय व्यवहार न करें।
The duty of the parents is not fulfilled only by giving birth to the child, but after the birth of the child comes the test of their duty. It is easy to produce children, but to develop their personality properly, to make them virtuous, virtuous, duty-oriented citizens is very labor and painstaking. Responsible parents are alert and alert in inculcating good values in their children from the very beginning, giving proper education and initiation. Usually by the age of one year the child starts seeing, understanding the environment around him. As he grows up, he mixes with family members. The family environment, its motives have an unavoidable effect on the child. Therefore, it becomes the first duty of the parents that before making the child better, they themselves should improve their behavior and behavior and do not do any undesirable behavior in front of him.
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परमात्मा के अनेक गुणवाचक नाम महर्षि दयानन्द ने ऋग्वेद के 7वें मंडल के 61वें सूक्त के दूसरे मंत्र तक और माध्यन्दिन शुक्ल यजुर्वेद संहिता के सम्पूर्ण मंत्रों का भाष्य किया। उससे पूर्व उवट, महीधर और सायण इस का भाष्य कर चुके थे। उवट और महीधर के भाष्य मुख्य रूप से कात्यायन- श्रौतसूत्र में विनियोजित कर्मकाण्ड का अनुसरण करते हैं और सायण के भाष्य भी इसी...