पंचकोशी साधना
पंचकोशों का जागरण जीवन चेतना के क्रमिक विकास की प्रक्रिया है। यह सृष्टिक्रम के साथ मंथरगति से चल रही है। यह भौतिक विकासवाद है। मनुष्य प्रयत्नपूर्व इस विकासक्रम को अपने पुरुषार्थ से साधनात्मक पराक्रम करके अधिक तीव्र कर सकता है और उत्कर्ष के अंतिम लक्ष्य तक इसी जीवन में पहुँच सकता है। यही पंचकोशी साधना है। काम-क्रोध, लोभ-मोह, मद-मात्सर्य यह छह शत्रु और ममता, तृष्णा आदि दुष्प्रवृत्तियाँ मनोमय कोश में छिपी रहती हैं। कोश साधना से उनका निराकरण होता है।
The awakening of the Panchkoshas is a process of gradual development of life consciousness. It is moving at a slow pace along with the universe. This is physical evolution. Man can accelerate this development by doing spiritual feats with his effort before effort and can reach the ultimate goal of excellence in this life. This is Panchkoshi Sadhana. Sex-anger, greed-attachment, mad-matsarya, these six enemies and the vicious tendencies of love, craving, etc., remain hidden in the Manomaya kosha. They are resolved by the practice of kosha.
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परमात्मा के अनेक गुणवाचक नाम महर्षि दयानन्द ने ऋग्वेद के 7वें मंडल के 61वें सूक्त के दूसरे मंत्र तक और माध्यन्दिन शुक्ल यजुर्वेद संहिता के सम्पूर्ण मंत्रों का भाष्य किया। उससे पूर्व उवट, महीधर और सायण इस का भाष्य कर चुके थे। उवट और महीधर के भाष्य मुख्य रूप से कात्यायन- श्रौतसूत्र में विनियोजित कर्मकाण्ड का अनुसरण करते हैं और सायण के भाष्य भी इसी...