गुरुप्राप्ति व गुरुकृपा
गुरुप्राप्ति व गुरूकृपा प्राप्ति के लिए श्रद्धा की आवश्यकता है। तीव्र मुमुक्षुत्व अथवा गुरुप्राप्ति की तीव्र उत्कंठा, इस एक गुण के कारण गुरुप्राप्ति शीघ्र होती है, वह गुरुकृपा सदा बनी रहती है। गुरु मुझे अपना कहें, मुझ पर उनकी कृपादृष्टि हो, दिन-रात इसी बात का ध्यान कर मैं क्या करूँ, जिससे वे प्रसन्न होंगे-इस दृष्टि से प्रयत्न करना अति आवश्यक है। आद्द्य तीन युगों की तुलना में कलियुग में गुरुप्राप्ति व गुरुकृपा होना कठिन नहीं है। यहाँ ध्यान रखने योग्य बात यह है कि गुरुकृपा बिना गुरुप्राप्ति नहीं होती है। भविष्य में कौन उनका शिष्य होगा, यह गुरु को पहले से ही ज्ञात होता है।
Faith is required for attainment of Guru and attainment of Guru's grace. Intense Mumukshutva or intense yearning for attainment of Guru, due to this one quality, attainment of Guru is quick, that Guru's grace remains forever. Guru should call me his own, may he have his blessings on me, what should I do by meditating on this thing day and night, which will make him happy - it is very necessary to make efforts from this point of view. It is not difficult to attain the Guru's grace and Guru's grace in Kali Yuga as compared to the initial three Yugas. The point to be kept in mind here is that without Guru's grace, there is no Guru-realisation. Who will be his disciple in future, it is known to the Guru in advance.
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परमात्मा के अनेक गुणवाचक नाम महर्षि दयानन्द ने ऋग्वेद के 7वें मंडल के 61वें सूक्त के दूसरे मंत्र तक और माध्यन्दिन शुक्ल यजुर्वेद संहिता के सम्पूर्ण मंत्रों का भाष्य किया। उससे पूर्व उवट, महीधर और सायण इस का भाष्य कर चुके थे। उवट और महीधर के भाष्य मुख्य रूप से कात्यायन- श्रौतसूत्र में विनियोजित कर्मकाण्ड का अनुसरण करते हैं और सायण के भाष्य भी इसी...