आर्य समाज का भविष्य
हजारों वर्षो से भारत की निरहि जनता जन्मना ब्राह्मणों और मुस्लिम शासकों के अत्याचारों से त्रस्त हो त्राहिमाम कर रहे थी। १८५७ के स्वतंत्रता आन्दोलन की असफलता के पश्चात् भारतीय जनता ने अंग्रेजों की अजेय मान, परतंत्रता को ही अपनी नियति मान लिया था। ऐसे अंधकार की दशा में महर्षि दयानन्द सरस्वती ने वैदिक सिद्धांतों की पुनर्स्थापना के लिए पाखण्ड खण्डनी पताका, पाखंडियो के दुर्ग कुम्भ, मेले में लहरायी थी। तब से लेकर जब तक प्राण रहे, वे कुरीतियों के खण्डन और वैदिक सिद्धातों के मण्डन का व्रत निभाते रहे। उनके बाद यह कार्य रुक न जाए इसके लिए उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की थी।
उनके देहावसान के पश्चात उनके शिष्यों ने उनके कार्य की गति की को निरंतर तीव्र किया। स्वामी श्रद्धानन्द, महात्मा हंसराज, पंडित लेखराम, गुरुदत्त, महात्मा नारायण स्वामी सहित अनेकानेक महापुरुषों ने अपना पूरा जीवन ऋषि मिशन को सफल करने में न्योछावर कर दिया। इन बलिदानियों के रक्त से सिंचित हो आर्य समाज ने वैदक संस्कृति का अद्वितीय प्रचार-प्रसार किया। चहुँ ओर केवल दयानन्द का डंका ही बजता दीखता था।
Motivational speech on Vedas by Dr. Sanjay Dev
वेद कथा -1 | Explanation of Vedas & Dharma | Vedas in Hindi | Ved | मरने के बाद धर्म ही साथ जाता है।
पर क्या से क्या हो गया। आज आर्य समाजों के साप्ताहिक सत्संगों में उपस्थिति निरंतर घटती जा रही है। जो आर्य समाज घर घर में बसता था वह भवनों में कैद होकर रह गया। लाखों करोड़ों रूपया खर्च करके बड़े बड़े भवनों को बनाने पर तो पूरा ध्यान रहता है। पर समाजों में ने लोगों को जोड़ने पर किसी का ध्यान नहीं जाता। जिन आर्य समाजो में उत्सव होते भी है, उनमें क्षेत्र की जनता को आकर्षित करने के स्थान पर आसपास की अन्य आर्य समाजो के सदस्यों को ही बुलाकर समाज भर ली जाती है। आर्य समाजों के अधिकारीयों के लिए साप्ताहिक यज्ञ और सत्संग की व्यवस्था बना देना ही कर्तव्य की इतिथि बन गई है। आम जनता तो आर्य समाज को विवाह कराने वाली संस्था के रूप में जानती है।
जनता अध्यात्म और शांति की खोज में भटक रही है। अनेक पाखण्ड स्वामी विश्व की जनता की वरमाला कर अपनी स्वार्थ सिद्धि कर रहे हैं। जब लाखों की संख्या में लोग इन पाखण्डियों की बातें सुनने को एकमात्र हो सकते है, तो आर्य समाज में क्या कमी है? हमारे पास तो सत्य-विद्या-वेद की शक्ति है। योग एवं आयुर्वेद की हमारी सभ्यता के आधार है। विद्यालयों व गुरुकुलों का विशाल तंत्र है।
इतिहास साक्षी है कि क्रान्ति केवल युवकों द्वारा ही की जा सकती है। वृद्धजन मार्ग दर्शन तो कर सकते है, परंतु क्रान्ति लाने के लिए आवश्यक शक्ति और जोश का उनमें अभाव होता है। इस प्रकार गुरुवर विरजानन्द ने दयानन्द को आर्यावर्त के उद्धार का कार्य सौंपा था, उसी प्रकार आर्य युवकों को दयानंद का कार्य करने हेतु तैयार करने पर ध्यान देना चाहिए।
जितने युवक आज आर्य समाज के संस्थानों में आते हैं, उतने किसी और संस्था में उपलब्ध नहीं हैं। इतनी बड़ी युवाशक्ति के होने पर भी आर्य समाज बांझ के समान हैं। ये युवक अपनी स्वार्थ होने तक तो आर्य समाज के संस्थानों से जुड़ें रहते हैं। उसके बाद वे आर्य समाज से कोई सरोकार नहीं रखते हैं। इसके अलावा स्वयं आर्य समाजियों के पुत्र पुतियाँ भी आर्य समाज की ओर आकर्षित नहीं हो पा रहे हैं।
आर्य समाज को तो युवा शक्ति की खोज में कही ओर जाने की आवश्यकता नहीं हैं। यदि इन दो बड़े युवक कोषों का दोहन सही ढंग से कर लिए जाए तो कार्यकर्ताओं की कहीं कोई कमी नहीं रहेगी। आर्य वीर दल के पास युवकों को आकर्षित कर, आर्य समाज का कार्य करने के लिए तैयार करने हेतु बेहद सटीक कार्यक्रम हैं। आर्य वीर दल की शाखाऐं इस कार्य को पूरे विश्व में अनेक स्थानों पर भलीभांति कर रही है। जो आर्य समाजें अपने भविष्य के प्रति गंभीर हैं, उन्होंने पहले ही अपने प्राँगण में आर्य वीर दल की शाखा की स्थापना कर ली है।
सार्वदेशिक आर्य वीर दल सभी आर्यों, आर्य समाजों, विद्यालयों और गुरुकुलों में आह्वान करता है कि अपने प्राँगण में आर्य वीर दल की शाखा की स्थापना करे। यह शाखा पूर्णतः आपकी संस्था के अंतर्गत ही कार्य करेगी। विद्यालयों और गुरुकुलों में अवकाश के समय आर्य वीर दल के शिविर लगाने से भी बड़ा लाभ हो सकता है। आवश्यक व्यायाम शिखकों, आर्यवीरों के गणवेश की व्यवस्था और शाखाओं को नियंत्रण में रखने के लिए मंडल, जिला एवं प्रदेश स्तर पर विभिन्न अधिकारीयों की नियुक्ति की जाती है। आप शाखा लगाने के लिए इनकी सहायता ले सकते हैं। - अश्विनी कुमार आर्य
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The number of youth who come to Arya Samaj institutions today are not available in any other institution. The Arya Samaj is infertile despite having such a huge youth power. These youths remain attached to the institutions of Arya Samaj till their selfishness. After that they have no concern with the Arya Samaj. Apart from this, the sons of Arya Samajis themselves, the daughters, are also not being attracted towards Arya Samaj.
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परमात्मा के अनेक गुणवाचक नाम महर्षि दयानन्द ने ऋग्वेद के 7वें मंडल के 61वें सूक्त के दूसरे मंत्र तक और माध्यन्दिन शुक्ल यजुर्वेद संहिता के सम्पूर्ण मंत्रों का भाष्य किया। उससे पूर्व उवट, महीधर और सायण इस का भाष्य कर चुके थे। उवट और महीधर के भाष्य मुख्य रूप से कात्यायन- श्रौतसूत्र में विनियोजित कर्मकाण्ड का अनुसरण करते हैं और सायण के भाष्य भी इसी...