अनुभूत सत्य
जीवन के मर्म को जानने वालों के लिए यह बहुत ही अनुभूत सत्य है कि सफलताएँ हमेशा ही तप व पुण्य का परिणाम होती हैं, फिर ये अभी किए गए हों या पहले कभी अतीत में। हो सकता है कि अतीत हमें आज विस्मृत हो गया हो। इसे हम भूल गए हों, लेकिन इससे क्या हुआ, कर्म कभी नष्ट नहीं होता, ऊर्जा सदा ही अविनाशी होती है। इसके रूप जरूर बदलते हैं। शुभ कर्म समय पर अपना फल देते हैं, अशुभ कर्मों का फल भी निश्चित होता है।
It is a very felt truth for those who know the essence of life that successes are always the result of penance and virtue, whether they were done now or earlier in the past. Maybe the past has forgotten us today. We may have forgotten it, but what happened to it, karma is never destroyed, energy is always imperishable. Its forms do change. Good deeds give their fruits on time, the fruits of bad deeds are also fixed.
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परमात्मा के अनेक गुणवाचक नाम महर्षि दयानन्द ने ऋग्वेद के 7वें मंडल के 61वें सूक्त के दूसरे मंत्र तक और माध्यन्दिन शुक्ल यजुर्वेद संहिता के सम्पूर्ण मंत्रों का भाष्य किया। उससे पूर्व उवट, महीधर और सायण इस का भाष्य कर चुके थे। उवट और महीधर के भाष्य मुख्य रूप से कात्यायन- श्रौतसूत्र में विनियोजित कर्मकाण्ड का अनुसरण करते हैं और सायण के भाष्य भी इसी...