ईश्वर की भक्ति
संसार में बहुत लोग ईश्वर की भक्ति करना चाहते हैं परन्तु इसके लिए वे उपयुक्त समय, उपयुक्त स्थान और उपयुक्त परिस्थितियों की कल्पना में लगे रहते हैं। बचपन, जवानी या बुढ़ापा ईशर की भक्ति करने का कोई भी निर्धारित समय नहीं है। जिस भी अवस्था में, जिस समय व्यक्ति के मन में ईश्वर की भक्ति करने का विचार आता है वही समय ईश्वर की भक्ति करने का सबसे अच्छा समय होता है। जो व्यक्ति सांसारिक जिम्मेदारियों को समाप्त करके ईश्वर की भक्ति करना चाहते हैं वे कभी भी ईश्वर की भक्ति नहीं कर पाते हैं। मनुष्य को तो इतना भी नहीं पता कि वह अगले क्षण तक जीवित भी रहेगा या नहीं और वह वृद्धावस्था में ईश्वर की भक्ति करने की बातें करता है।
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परमात्मा के अनेक गुणवाचक नाम महर्षि दयानन्द ने ऋग्वेद के 7वें मंडल के 61वें सूक्त के दूसरे मंत्र तक और माध्यन्दिन शुक्ल यजुर्वेद संहिता के सम्पूर्ण मंत्रों का भाष्य किया। उससे पूर्व उवट, महीधर और सायण इस का भाष्य कर चुके थे। उवट और महीधर के भाष्य मुख्य रूप से कात्यायन- श्रौतसूत्र में विनियोजित कर्मकाण्ड का अनुसरण करते हैं और सायण के भाष्य भी इसी...