साम्यवादी व्यवस्था
परिवार के विकास का एक प्रयोग इस सदी के आरंभ में 'कम्यून लार्जर फैमिली' के रूप में किया गया था। साम्यवादी व्यवस्था के शुरुआती दिनों में प्रयोग चले भी जहाँ साम्यवादी व्यवस्था नहीं थी, वहाँ सहकारी प्रयोगों में उसका प्रभाव दिखाई दिया। आठवाँ दशक पूरा होने तक साम्यवादी व्यवस्था दम तोड़ने लगी। उसके साथ 'कम्यून' और 'सहकारी जीवन' के प्रयोग भी लड़खड़ा गए। परिवारसंस्था का आधार खिसकने लगने का यह एक उपलक्षण मात्र है, मुख्य समस्या इसके अस्तित्व पर मँडराने लगे संकट और उसेक गहराते जाने की है।
An experiment in the development of the family was made at the beginning of this century in the form of 'Commune Larger Family'. Experiments went on in the early days of the communist system, even where there was no communist system, its effect was visible in cooperative experiments. By the end of the eighties, the communist system began to collapse. With that the usages of 'commune' and 'cooperative living' also faltered. This is just a symptom of the family institution starting to slip, the main problem is the crisis hovering over its existence and its deepening.
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परमात्मा के अनेक गुणवाचक नाम महर्षि दयानन्द ने ऋग्वेद के 7वें मंडल के 61वें सूक्त के दूसरे मंत्र तक और माध्यन्दिन शुक्ल यजुर्वेद संहिता के सम्पूर्ण मंत्रों का भाष्य किया। उससे पूर्व उवट, महीधर और सायण इस का भाष्य कर चुके थे। उवट और महीधर के भाष्य मुख्य रूप से कात्यायन- श्रौतसूत्र में विनियोजित कर्मकाण्ड का अनुसरण करते हैं और सायण के भाष्य भी इसी...