पुस्तकीय शिक्षा
बालक की पुस्तकीय शिक्षा को ही हम सम्पूर्ण शिक्षा मान बैठते हैं। बच्चा स्कूल जाता है की बालक की शिक्षा हो रही है। किंतु पुस्तकीय शिक्षा का वृत बहुत छोटा होता है। पुस्तकीय शिक्षा से मानसिक विकास तो हो जाता है; लेकिन उसमें व्यवाहरिक उपयोग की कला उसे समझ में नहीं आती है। ऐसा लगता है कि उसके पास पुस्तक का ज्ञान सब कुछ है, पर आस-पास के ज्ञान से वह अनभिज्ञ है। अस्तु, व्यवाहरिक ज्ञान देने के लिए, परिवारों में प्रयत्न किए जाने चाहिए।
We consider the bookish education of the child as the complete education. The child goes to school that the child is being educated. But the circle of book education is very small. Book education leads to mental development; But he does not understand the art of practical use in it. It seems that he has everything in the knowledge of the book, but he is unaware of the knowledge around. Therefore, efforts should be made in families to impart practical knowledge.
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परमात्मा के अनेक गुणवाचक नाम महर्षि दयानन्द ने ऋग्वेद के 7वें मंडल के 61वें सूक्त के दूसरे मंत्र तक और माध्यन्दिन शुक्ल यजुर्वेद संहिता के सम्पूर्ण मंत्रों का भाष्य किया। उससे पूर्व उवट, महीधर और सायण इस का भाष्य कर चुके थे। उवट और महीधर के भाष्य मुख्य रूप से कात्यायन- श्रौतसूत्र में विनियोजित कर्मकाण्ड का अनुसरण करते हैं और सायण के भाष्य भी इसी...